स्थापना

धार्मिक चिन्तन को यदि वैज्ञानिक विचारधारा से जोड़ा जाये तो यह सर्वमान्य है, कि जैसे मानव शरीर मे मस्तिष्क अपने गुणों के कारण पूरे शरीर में एक विशिष्ट स्थान रखता है उसी प्रकार पृथ्वी पर अवस्थित कुछ विशेष स्थान अपनी विशिष्टाओं के कारण पवित्र माने जाते हैं।

इसी मान्यता के आधार पर वीर बाबा के नाम अंलकृत स्थल को जनमानस की श्रद्धा ने ‘तीर्थ’ व ‘पावन धाम’ के रूप में समादृत किया है।

फलस्वरूप वीर बाबा के नाम से पूर्व परिचित स्थल को श्रद्धालुओं की महान आस्था को देखते हुये कालान्तर में श्री संकटमोचन वीरबाबा मंदिर की स्थापना 04 जून 2003 को लखीमपुर के भक्तों के जयघोष के मध्य हुई। पूरे शहर में इतना बड़ा जुलूस निकला, जो कि पूर्व में कभी ऐसी नही उल्लास देखने को मिला और एक मिसाल बनी। जलूस में स्थानीय स्तर के अलावा दूर-दूर गाँवों से भी भक्त लोग आये। पूरा-पूरा शहर राममय था। लगभग 11 घंटे की यात्रा के बाद प्राण प्रतिष्ठा का कार्य सम्पन्न हुआ।

इस मंदिर की संकल्पना का मुख्य श्रेय श्री रुद्र प्रताप सिंह आई. ए. एस. को जाता है। आज भी उन्ही के द्वारा इस पवित्र स्थल की देखभाल, संचालन एवं मूर्त रूप दिया जा रहा है। २००३ से आज तक मंदिर का विस्तार बहुत अधिक हुआ है। मंदिर की स्थापना में असंख्य भक्तो का योगदान है। श्री हनुमान जी की कृपा भी असंख्य भक्तो को प्राप्त हो रही है, यही कारण है की प्रत्येक मंगल को दर्शन हेतु भारी भीड़ उमड़ती है।

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